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भटकती आत्मा भाग - 23




भटकती आत्मा भाग –23

कलेक्टर साहब व्यग्रता पूर्वक डॉक्टर की बातों को सुन रहे थे। उन्होंने कहा था  -
    "साहब आपकी बेटी गॉड की कृपा से बच गई है। उनके शरीर में काफी चोट आई है,परंतु सिर में चोट नहीं लगी है,इसलिए घबड़ाने की जरूरत नहीं है"।
   कलेक्टर साहब की आंखों में पानी आ गया। गॉड की उन्होंने मन ही मन प्रार्थना किया। स्ट्रेचर पर मैगनोलिया को एक विशेष वार्ड में ले जाया गया,जहाँ ग्लूकोज़ और ऑक्सीजन मैगनोलिया को लगाने की व्यवस्था डॉक्टर करने लगे थे।
कई इंजेक्शन उसको दिया गया। मिस्टर जॉनसन पास ही पड़े एक स्टूल पर बैठ गया था। डॉक्टर ने कहा -
  "चौबीस घंटे के बाद रोगी की चेतना वापस आ जानी चाहिए। तब तक हम इन्हें ऑब्जरवेशन में रखेंगे। आप चाहें तो इन के निकट रह सकते हैं"।
  कलेक्टर साहब ने मिस्टर जॉनसन को बाहर नाश्ता करने के लिए भेजा,और स्वयं मैगनोलिया को नीरीह सा देखने लगे थे। एक घण्टे के बाद मिस्टर जानसन कलेक्टर साहब के लिये बाहर से कुछ नाश्ता लेकर आया। वात्सल्य पूर्ण नेत्रों से उन्होंने मिस्टर जॉनसन को देखा फिर नाश्ता करने लगे। तत्पश्चात उन्होंने जॉनसन से वहीं रहने को कहा और स्वयं बाहर निकल गए। कुछ देर के बाद वे अपने बंगले में पहुँच कर किसी को फोन करने लगे थे। उसके बाद पुनः अस्पताल में आ गए। रात आंखों आंखों में ही काट दिए उन्होंने।

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जानकी की आंखें मनकू की प्रतीक्षा में बोझिल होने लगी थीं। पता नहीं क्यों नहीं आया अभी तक मनकू! करवट बदलती हुई जानकी ने रात बिता दी। जब बाल सूर्य की रक्ताभ किरणें छप्पर से छन कर उसकी पलकों से टकराईं,तब हड़बड़ा कर उसने उठने का उपक्रम किया। अंगड़ाइयां लेती हुई जानकी खड़ी हो गई। बाहर तक आई,परंतु मनकू माँझी को नहीं पाया उसने। वह आशंका से घबड़ा ही रही थी,अब दिल और भी धड़कने लगा था। बस्ती में कई लोगों से मनकू माँझी के नहीं आने की बात उसने कह सुनाया। ग्रामीण घबड़ा गए। एक वृद्ध के कहने पर कई युवक बंगले की तरफ भागे। बंगला में साहब तो नहीं थे, मैगनोलिया भी कहीं दृष्टिगोचर नहीं हुई। युवकों को आश्चर्य हुआ । एक नौकर कमरे से बाहर आता हुआ दिखाई पड़ा। एक युवक ने उससे मनकू माँझी के विषय में पूछा। उसने अपनी अनभिज्ञता व्यक्त की,तथा मैगनोलिया की आत्महत्या करने की बात बताइ। युवक घबड़ा गया,मैगनोलिया को आत्महत्या करने को क्यों बाध्य होना पड़ा ? वह मनकू माँझी को जी जान से चाहती है,कहीं मनकू को मार तो नहीं डाला गया,जिसके शोक में  मैगनोलिया ने ऐसा किया। फिर वह युवक क्रोधित हो उठा,उसने उस नौकर को धर दबोचा, और उस पर लात-घूँसे बरसाने लगा। फिर रुआंसा सा होता हुआ उसने पूछा -   
   "तुम साहब के नौकर हो तो क्या अंग्रेज बन गए ? तुम क्या भारतीय नहीं हो ? फिर क्यों नहीं वास्तविकता बतालाते हो"? 
 घबड़ाता हुआ नौकर ने कहा - "तुम लोग यदि साहब से यह बात नहीं कहोगे तब कह सकता हूं,क्योंकि मेरी जान का भी खतरा उपस्थित हो जाएगा, नौकरी तो जाएगी ही"।
  युवकों ने उसको आश्वासन दिया,तब उस नौकर ने कहा  -   
    "एक नया साहब यहां कई महीनों से ठहरे हुए थे,उन्होंने मैगनोलिया से प्यार करना चाहा था,परंतु मनकू माँझी उनके रास्ते में बाधा बना हुआ था। इसलिए कल दोपहर के बाद जब मनकू माँझी किसी काम से बंगले पर आया,तब उस साहब ने कई गुंडों की सहायता से उसको पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। पता नहीं शायद मार ही डाला,फिर उसको जीप में लादकर कहीं ठिकाना लगा दिया गया। साहब की बेटी को शायद यह पता लग गया,और उसने घाटी में कूद कर आत्महत्या कर लिया। घाटी से रात में उसका बेहोश शरीर मिला और कलेक्टर साहब उसको लेकर अस्पताल चले गए। अभी भी वह वहीं हैं। पता नहीं मैगनोलिया जिंदा है या मर ही चुकी है"।
  नौकर का एक-एक शब्द युवकों के कानों में पिघले हुए शीशे सा पड़ा। वे लोग दु:ख से अपने को शक्तिहीन महसूस कर रहे थे। फिर लौट गए बस्ती की तरफ। बस्ती में जब यह बातें लोगों के कर्ण गह्वर में पड़ीं,तब सब के सब सन्न रह गये। मानो पूरा गांव किसी सम्मोहन में डूब चुका था,जानकी की हालत तो और भी दयनीय हो गई। इस बात को सुनकर खड़ी-खड़ी ही भूमि पर जा गिरी,उसकी चेतना विलुप्त हो गई। युवकों में आक्रोश फैल चुका था,वे मरने मारने पर उतारु हो गये थे। कुछ बड़े बुजुर्गों के समझाने पर युवक शांत हुए। अंग्रेज साहब से लड़ना बस्ती को नुकसान ही पहुंचाना था। इससे कोई फायदा तो होने वाला था नहीं, फिर जो मर गया वह वापस आने वाला तो था नहीं, फिर ऐसे में क्यों विद्रोह किया जाए। सब लोग यह बात समझ रहे थे,इसलिए चुपचाप रहने में ही भलाई समझा उन्होंने। मनकू के लिये सभी अत्यन्त शोक विह्वल थे,इसलिए उस दिन कोई भी ग्रामीण खेत पर नहीं गया। सब अपने-अपने कामों को छोड़कर बस्ती में ही मातम मनाते रहे।


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     जमुना बाड़ी !
सपेरों की बस्ती ! जहाँ सदा मस्ती का आलम रहता ! लोगों के मुख पर प्रसन्नता ही प्रसन्नता होती ! ऐसा क्यों न हो भला ! न किसी से बैर,और न ही किसी प्रकार की चिंता ! वर्तमान में ही जीने वाले,भूत और भविष्य की चिंता क्यों करने जायें भला ! लेकिन नहीं आज उस बस्ती में चिंता की रेखा प्रत्येक सपेरों के मुख पर खिंची हुई थी l इसका कारण था वह अज्ञात युवक जिसको जंगल से लाया गया था ।
सरदार अपने मंत्रों का प्रयोग उस युवक  पर करता जा रहा था,परन्तु अभी तक निराशा ही हाथ लगी थी। सांप के विष उतारने का मंत्र व्यर्थ सा होते देखकर सरदार को अपनी गलती का पता चला। उसने अपने पास ही बैठी बेटी से इस त्रुटि का कारण बताया,और कुछ आदेश दिया। बेटी उठ कर गई और पीली सरसों के दाने उठा लाई। सरदार ने उसे हाथों में लेकर आंखें बंद कर मंत्र पढ़ना प्रारंभ किया। एक साँप कहीं से दौड़ा हुआ पहुंचा और उस युवक के पैर में काटने लगा। परन्तु वह काट नहीं रहा था,वह विष को खींचता जा रहा था। कुछ देर के बाद साँप एक ओर चला गया। सरदार के मुख पर प्रसन्नता  थिरकने लगी,क्योंकि उस अज्ञात युवक के शरीर में अब हरकत हो रहा था। कुछ देर के बाद उसकी आंखें मानो चिरनिद्रा से खुल गईं। उसने आश्चर्य चकित सी इधर-उधर अपनी दृष्टि  फेरी, फिर इशारे से पानी मांगा। सरदार ने अपनी बेटी से पानी लाने को कहा। वह एक मिट्टी के सकोड़े में पानी ले आई। पानी पीकर युवक ने फिर आंखें बंद कर लीं। कुछ देर के बाद शरीर में उठते हुए पीड़ा से वह युवक कराह उठा। सरदार ने अपनी भाषा में उससे पूछा -  
      "तुम कौन हो,और उस जँगल में कैसे पहुंचे"?
उसके प्रश्नों को ध्यान पूर्वक युवक ने सुना,फिर कुछ देर के बाद फीकी मुस्कुराहट बिखेरता हुआ बोला -
   "मेरा नाम मनकू माँझी है। मुझे कुछ बदमाश मार कर बेहोश कर चुके थे,फिर पता नहीं उसके बाद क्या हुआ"।
सरदार अपनी मेहनत की सफलता से खुश था। उसने उसे उसके बाद की सारी बातें बता दीं,जिसकी केवल संभावना ही व्यक्त की जा सकती थी। गांव में सरदार की बेटी दौड़ी हुई अपनी अन्य सहेलियों के पास पहुंची। युवक के जिंदा बच जाने की बात कानो कान पूरी बस्ती में फैल गई। लोग सांप से विष निकालने में व्यस्त थे। युवतियां सांप के मांस को काटने में व्यस्त थीं। फिर तो गांव में प्रसन्नता ही प्रसन्नता छा गई। कुछ युवतियाँ सांप का मांस बनाने लगीं। युवक वर्ग प्रसन्नता से नाचने लगे थे l बीन की मधुर आवाज वातावरण में संगीत की मधुर तान बिखेर रहा था l  मांस बन जाने के बाद युवतियां भी नाचने लगीं l सरदार उनके बीच ही उपस्थित थे l रात अपनी आयु के प्रथम चरण में थी। मनकू माँझी  अंगड़ाइयाँ लेता हुआ उठ बैठा। शरीर का अंग अंग दर्द से जैसे टूट रहा था,फिर भी इस मस्त आलम में उससे रहा ना गया। उसके कदम भी उस भीड़ की ओर बढ़ गए, फिर वह भी थिरकने लगा।

  क्रमशः




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